जिस देश के रोल मॉडल वैज्ञानिक और सैनिक हों तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।किसान का बेटा कैसे बना भारत का 'रॉकेट मैन'


जिस देश के रोल मॉडल वैज्ञानिक और सैनिक हों तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। 

मुझे अपने देश और देशवासियों पर गर्व है।

अभिनंदन के बाद अब इसरो प्रमुख सिवन  को लोगो ने चंद्रयान-2 के बाद एक नए रोल मॉडल के रूप में पूरे देश ने स्वीकार किया है।

किसान का बेटा कैसे बना भारत का 'रॉकेट मैन',
ISRO चेयरमैन की जिंदगी का सफरनामा

सिवन के सहकर्मी उन्हें कठिन काम को पूरा करने में माहिर लेकिन सादा और हंसमुख व्यक्ति बताते हैं। एक किसान परिवार में जन्में के. सिवन के भारत के 'रॉकेट मैन' बनने का सफर आसान नहीं है।

चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम के चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की असफलता के बाद इसरो के अध्यक्ष के. सिवन रो पड़े। इससे पहले सिवन ने रुंधे गले से घोषणा की कि लैंडर का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया है और आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है। सिवन के सहकर्मी उन्हें कठिन काम को पूरा करने में माहिर लेकिन सादा और हंसमुख व्यक्ति बताते हैं। एक किसान परिवार में जन्में के. सिवन के भारत के 'रॉकेट मैन' बनने का सफर आसान नहीं है।

पढ़ें उनकी जिंदगी का सफरनामा और संघर्ष की दास्तां...
- सिवन का जन्म कन्याकुमारी के तरक्कनविलई गांव में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे। सिवन ने अपनी स्कूली शिक्षा तमिल मीडियम के एक सरकारी स्कूल से की। सिवन अपने परिवार के पहले ग्रेजुएट थे।

- 1980 में सिवन ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बैचरल डिग्री हासिल की। उसके बाद आईआईएससी बेंगलुरु से 1982 में मास्टर्स किया।

- सिवन ने 1982 में ही इसरो ज्वॉइन कर लिया और पीएसएलवी प्रोजेक्ट का हिस्सा बने। अपने तीन दशक लंबे करियर में सिवन ने जीएसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी मार्क3 प्रोजेक्ट में काम किया और जीएसएलवी रॉकेट के निदेशक भी रहे।

- सिवन ने 2006 में आईआईटी बॉम्बे से पीएचडी पूरी की। इसरो में उनके योगदान के लिए उन्हें कई अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

- इसरो के अध्यक्ष का पदभार संभालने से पहले सिवन तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेश सेंटर के निदेशक थे।

- फरवरी 2017 में भारत ने 104 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजकर विश्व रिकॉर्ड बनाया। सिवन ने इसमें अहम भूमिका अदा की।

- 22 जुलाई 2019 को सिवन के नेतृत्व में इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया। लेकिन 6-7 सितंबर की रात को अपने आखिरी चरण में चंद्रमा की सतह से 2 किमी दूर लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया।

चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का पता चल गया है। कहा जा रहा है कि ऑर्बिटर ने कुछ तस्वीरें भी भेजी हैं। इसरो के वैज्ञानिक उससे संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट से वैसे तो कई वैज्ञानिक जुड़े हैं, लेकिन सबसे अहम भूमिका इसरो प्रमुख के सिवन और मिशन डायरेक्टर ऋतु कारिधाल और प्रोजेक्ट डिप्टी डायरेक्टर, रेडियो फ्रीक्वेंसी चंद्रकांत ने निभाई।

पिता के साथ खेत में काम करते थे
तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के नागरकोईल कस्बे में जन्मे के. सिवन की पढ़ाई तमिल मीडियम सरकारी स्कूल में हुई। स्कूल में छुट्‌टी के दिन पिता के साथ खेत में काम करते थे। नंगे पैर स्कूल जाते थे और लूंगी पहनते थे। 12वीं में गणित में 100% अंक लिए। इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन पिता ने कहा कि पास के कॉलेज से बीएससी कर लो, ताकि खेत में भी काम कर सको। सिवन अड़ गए और पसंद के कॉलेज में जाने के लिए पिता के खिलाफ ही 7 दिन के अनशन पर बैठ गए। पिता नहीं माने तो बीएससी में प्रवेश ले लिया। तभी पिता को सिवन की प्रतिभा का अहसास हुआ और इंजीनियरिंग करने के लिए चेन्नई भेज दिया। उन्हें खेत बेचने पड़े। सिवन ने मद्रास इंस्टी‌ट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बीई किया। सिवन की रुचि सैटेलाइट बनाने में थी, लेकिन काम मिला रॉकेट बनाने का। वे कहते हैं, ‘मैंने जो चाहा, वो कभी नहीं मिला, पर जो मिला, पूरी शिद्दत से किया।’

नोट:-सभी तथ्य व जानकारी वेब & सोशल मीडिया से जुटाए गए है....

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