गिरौद्पुरी धाम-आध्यात्मिकता और इतिहास के गहरे संबंध छत्तीसगढ़ के सतनाम पंथ संस्थापक की धर्मस्थल


बलौदाबाजार से 40 किमी दूर तथा बिलासपुर से 80 किमी दूर महानदी और जोंक नदियों के संगम से स्थित, गिरौधपुरी धाम छत्तीसगढ़ के सबसे सम्मानित तीर्थ स्थलों में से एक है। इस छोटे से गांव, जिसमें आध्यात्मिकता और इतिहास  के गहरे संबंध हैं, छत्तीसगढ़ के सतनामी पंथ, गुरु घासीदास के संस्थापक का जन्मस्थान है। इस क्षेत्र के एक किसान परिवार में पैदा हुए, एक दिन वह छत्तीसगढ़ में एक बहुत सम्मानित व्यक्ति गुरु घासीदास बन गया। कहा जाता है कि उन्होंने औरधारा वृक्ष के नीचे लंबे समय तक तपस्या की है जो अभी भी वहां है। इस पवित्र स्थान को तपोभूमी भी कहा जाता है। चरन कुंड एक पवित्र तालाब से एक और किलोमीटर प्राचीन अमृत कुंड स्थित है, जिसका पानी मीठा माना जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, मानवता के पुजारी संत गुरु घासीदास जी का जन्म गिरौदपुरी में 18 दिसंबर सन 1756 को हुआ था. युवा अवस्था में उन्होंने इसी गांव से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों से परिपूर्ण छाता-पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध पर्वत पर कठोर तपस्या की थी और गिरौदपुरी पहुंचकर लोगों को सत्य, अहिंसा, दया, करुणा और परोपकार के उपदेशों के साथ मानवता का संदेश दिया था.


जैत खाम्भ, गिरौदपुरी धाम


मुख्य मंदिर, गिरौदपुरी धाम

छत्तीसगढ़ की राजधानी से करीब 145 किलोमीटर दूर स्थित बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी, जहां विशाल स्तंभ ‘जैतखाम’ का निर्माण किया गया है. यह स्तंभ दिल्ली की कुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊंचा है. यह स्तंभ कई किलोमीटर दूर से ही दिखने लगता है. सफेद रंग के इस स्तंभ का वास्तुशिल्प इतना शानदार है कि दर्शकों की आंखें ठिठक जाती हैं. दिन ढलते ही दूधिया रोशनी में जैतखाम की भव्यता देखते ही बनती है.



मुख्य द्वार, गिरौदपुरी धाम

गिरौदपुरी सतनामी समाज के लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है. यहां हर साल फागुन पंचमी से तीन दिन का मेला लगता है, जिसमें पांच लाख से भी ज्यादा लोग हिस्सा लेते हैं. हालांकि सालभर यहां भक्तों का आना-जाना लगा रहता है.

गिरौदपुरी का जैतखाम वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना है. इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. जैतखाम की छत पर जाने के लिए दो तरफ से प्रवेशद्वार और सीढ़ियां बनाई गई हैं. दोनों तरफ 435-435 सीढ़ियां हैं. दोनों ओर सीढ़ियां इस तरह से बनाई गई हैं कि अलग-अलग चलने पर भी ऐसा आभास होता है कि लोग एक साथ चल रहे हों. दोनों सीढ़ियां एक-दूसरे के ऊपर दिखाई देती हैं. दूसरी तरफ चलने वाले लोगों को लगता है कि पास चल रहे लोगों के साथ मिलाया जा सकता है, लेकिन सीढ़ियां जहां छत पर खत्म होती हैं लोगों का मिलन वहीं संभव है.



इस तरह का डिजाइन जयपुर के जंतर-मंतर और लखनऊ की भूल-भूलैया में भी इस्तेमाल किया गया है. गिरौदपुरी की छत पर जाने के लिए दो लिफ्ट भी हैं. जैतखाम के चारों ओर खूबसूरत गार्डन है. साइट इंजीनियरों के अनुसार गार्डन को देशी-विदेशी फूलों से सजाया गया है. गार्डन का विस्तार आगरा के ताजमहल और दिल्ली के मुगल गार्डन की तर्ज पर किया जा रहा है. कुतुब मीनार से ज्यादा ऊंचे जैतखाम बनाने की योजना अजीत जोगी की सरकार ने तैयार की थी, पर उसे अमली जामा रमन सिंह सरकार ने पहनाया. इस स्तंभ का निर्माण 2007-08 में 51.43 करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुआ.



गिरौदपुरी में बाबा गुरु घासीदास के प्राचीन मंदिर से कुछ कदमों की दूरी पर स्थित जैतखाम के मुख्य प्रवेशद्वार की सीढ़ियों से उतरते ही ताजमहल की तर्ज पर विशाल वॉटर बॉडी बनाई गई है. रात में इस पूल के पानी में जैतखाम की परछाई भी दिखाई देती है. परछाई से ऐसा लगता है कि एक ही स्थान पर दो जैतखाम खड़े हैं. जैतखाम की ऊंचाई 77 मीटर (243 फीट) है, जबकि कुतुब मीनार 72.5 मीटर (237 फीट) ऊंची है.

जैतखाम को बनाने में सात खंभों का उपयोग किया गया है. जैतखाम के अंदर एक विशाल हॉल है. इसके अलावा ऊपर चढ़ते हुए जैतखाम की गोलाई से गिरौदपुरी का नजारा भव्य नजर आता है. पहाड़ी भी ऐसे लगती है मानो उन्हें हाथों से छुआ जा सकता है.

जैतखाम से बाबा घासीदास का मंदिर भी साफ दिखता है. लोक निर्माण विभाग की ओर से सड़क भी बनाई गई है, इस अद्भुत जैतखाम को देखने देशभर के लोग पहुंच रहे हैं.


1 Comments

  1. सम्पूर्ण जानकारियाँ देने के लिए धन्यवाद्

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